हमारी बौद्धिक क्षमता our intellectual abilities

 


बौद्धिक संपदा की जननी भारत ही है - अरविन्द सिसोदिया 

आज विश्व बौद्धिक संपदा दिवस मना रहा है, यह 26 अप्रैल को पूरे विश्व में मनाया जाता है। इस दिवस को मूल रूप से पेटेंट संबंधी नियम कानूनों के प्रचार प्रसार की दृष्टि से अधिक महत्व दिया गया है।

अपनी बुद्धि के सृजित या अनुसंधानकृत या परिश्रम से जो बौद्धिक स्तर का ज्ञान अथवा तकनीक या कुछ बिलकुल नया अर्जित किया करते है, उस पर अपने एकाधिकार को, स्वामित्व को बनाये रखना और फिर उससे आय प्राप्त करते रहने की व्यवस्था संबंधी एक नियमावली को पेटेंट कानून के रुप में जाना जाता है और इसी का जनजागरण इस दिवस के माध्यम से किया जाता है।

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India is the mother of intellectual property - Arvind Sisodia

India is the mother of intellectual property - Arvind Sisodia

https://arvindsisodiakota.blogspot.com/2023/04/india-is-mother-of-intellectual-property.html

The great research handed over by the old generations of India, the Archayas, Dharmacharyas, Rishis, Munis, Sages and Saints, should be taken forward by the new generation of India. The heritage left behind by our older generations should be studied and contemplated, so that in your mind too, the proof of your superiority, the strength of a belief, the awakening of a confidence, you too speak India by touching new heights. Mother's glory We have given a lot to this world and will continue to give in future also.

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बौद्धिक क्षमता और विकास 

यूं तो बौद्धिक क्षमता और विकास की जननी और उसको निरंतर बनाए रखने वाली प्रथम संस्कृति प्रथम सभ्यता भारतीय संस्कृति , भारतीय सभ्यता और भारत देश की सनातन हिन्दम संस्कृति है।  इस देश की हिंदू संस्कृति ने बौद्धिक क्षेत्र के मामले में अनेकानेक बड़े-बड़े कार्य किए हैं, चौंकानें व स्तब्ध करने वाला ज्ञान प्रस्तुत भी किया है। 

मानव सभ्यता को कल्पना की उडान भरनें की जो ताकत किसी नें दी है तो वह, भारत का संस्कृत साहित्य है। वेद पुराण शास्त्र उपनिषद, रामायण, महाभारत आदि पुरातन संस्कृत साहित्य भारतीय बौद्धिक क्षमता का विशाल भंडार है । किंतु दुर्भाग्य से भारत लगभग 3000 वर्षों से लगातार विदेशी आक्रमणकारियों से जुझ रही है, उनके हमलों से मुकाबला कर रही है। इतना ही नहीं भारतीय संस्कृति को समय समय पर भारत के अन्दर भी संघर्ष करना पडा है।

भारत में ऐसे अनेकों अवसर आए जब विखंडित मानसिकता ने , नास्तिवाद ने भी चुनौती दी और भारतीय बौद्धिक दिशा को बदलने का प्रयत्न किया किन्तु जिसमें लोक कल्याण है। वही पुनः पुनः स्थपित हुआ। 

भारत तमाम परेशानियों के बावजूद श्रेष्ठ ज्ञान की परंपरा में आज भी सर्वोत्तम बना हुआ है। उसकी ज्ञानगंगा की विविध शाखाओं नें विश्व को श्रेष्ठ मार्गदर्शन किया है। विश्व को अग्रसर बन कर उस मार्ग पर चलाया है । भिन्न भिन्न मार्गों की कल्पना शक्ति दी है।

विश्व को सबसे पहले समाज शास्त्र भारत ने दिया, नक्षत्र औश्र आकाशीय विज्ञान का ज्ञान भारत में दिया, विश्व की सबसे पहले चिकित्सा पद्धति भारत में थी, विश्व को सबसे पहले कृषि और पशुपालन भारत ने दिया। यही नहीं  विश्व को सबसे पहले इंजीनियरिंग प्रजापति नें दी । विश्व को सबसे पहले भाषा, संस्कृत लीपि और लेखन भारत ने दिया, भारत का ऋग्वेद विश्व की सबसे प्राचीन पुस्तक के रूप में स्विकार किया गया है। विश्व को सबसे पहले संगीत ,वाद्य कला, नृत्य गायन आदि भारत ने ही दिया था। विश्व को सबसे पहले उच्च कोटि के भवन निर्माण और यहां तक कि एक नक्षत्र से दूसरे नक्षत्र जक की यात्रा तक की संभावनायें भारत के लोगों ने ही बताई है ।

इतना ही नहीं भारतीय संस्कृति की बौद्धिक क्षमता परम पिता परमात्मा की खोज में जुटती है, उसके बारे में तरह तरह के अनुसंधान करती है। वह जिज्ञासू बनती है कि हमारे मूल अस्तित्व के पीछे कौन है। स्वयं का भी एक बहुत बड़ा अनुसंधान अपने आप में रखती है, वह ध्यान और तपस्या की खोज करती है। मनुष्य की विविध आंतरिक क्षमताओं को खोजती है। आत्मा से लेकर परमात्मा तक पहुंचती है। ईश्वर के तमाम प्रकार के सामाजिक और आर्थिक प्रभावों को खोजती है। यह हिन्दू बौद्धिक स्तर ही जो दृश्य जगत और अदृश्य चेतन शक्तियों और आंतरिक विविधताओं का ज्ञान विश्व को सबसे पहले देती है।

 भारत में ज्ञान के आदान-प्रदान की बड़ी ऊंची व्यवस्था रही है। इस हेतु तीर्थाटन से लेकर विविध प्रकार के मेले उत्सव , त्यौहार और 12 वर्ष में भरने वाले कुंभ मेले ज्ञान एवं खोजों से प्राप्त नवीन ज्ञान विज्ञान अनसंधान के आदान-प्रदान की बहुत बड़ी व्यवस्था थी ।

यह ठीक है कि भारत के भक्ति काल में विज्ञान से दूरी बनी , इस अवसर पर यूरोप के लोगों ने विज्ञान में बहुत अधिक तरक्की की, निश्चित रूप से आज यूरोप वैज्ञानिक दृष्टि से आज भारत से आगे है। किंतु ज्ञान,विज्ञान और आध्यात्म की बौद्धिक क्षमताओं का मार्गदर्शन भारत की ही संस्कृति ने दिया व किया और इसीलिए भारत विश्व गुरु कहलाया ।

कोरोना जैसी वैश्विक महामारी में जब संपूर्ण विश्व दवा और वैक्सिंन से लेकर खाने पीने की व्यवस्था तक में परेशान था, उस स्थिति में भी भारत ने अपनी बौद्धिक क्षमता से पूरे विश्व को मार्ग दिखाया । वैक्सीनें भी खोजी और सबसे बडी बात उसे करोडों करौडों नागरिकों तक पहुंचाई। अन्य व्यवस्थाएं भी बनाईं । पूरे विश्व में सर्वश्रेष्ठ व्यवस्थापन भारत नें करके दिखाया। भारत की बौद्धिक क्षमता का कमाल पूरा विश्व मानता है । जनता की सेवा के लिये आज भी सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रनायक भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी को माना जाता है।

भारत की पुरानी पीढ़ीयों नें, आर्चायों ने धर्माचार्यों ने , ऋषियों नें, मुनियों ने, साधू - संतों ने जो महान अनुसंधान सौंपा हुआ, उसे भारत की नई पीढ़ी को आगे लेकर जाना चाहिये। अपनी पुरानी पीढ़ियों की धरोहर जो छोड़ कर गई हैं उनका अध्ययन चिंतन मनन करते रहना चाहिए, ताकि आपके मन में भी अपनी श्रेष्ठता का प्रमाण,एक विश्वास की ताकत बनें, एक आत्मविश्वास की जागृती बनें, आप भी नई नई ऊंचाईयों को छू कर बोलें भारत माता की जय । हमेनें इस विश्व को बहुत कुछ दिया है और आगे भी देते रहेंगे। 

मानवता, अहिंसा और शांती के साथ साथ सभी के सुख की कामना का मार्ग हमारी ही बौद्धिक क्षमता की उच्च्ता है।

 जय भारत जय हिंद

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