Ramayana - the culmination of sacrifice and dedication

 रामायण - त्याग और समर्पण क़ी पराकाष्ठा

रामायण - त्याग और समर्पण क़ी पराकाष्ठा

Ramayana - the culmination of sacrifice and dedication

रामायण - समर्पण क़ी पराकाष्ठा

अरविन्द सिसौदिया 9414180151

"लक्ष्मण सा भाई हो, कौशल्या माई हो,

स्वामी तुम जैसा, मेरा रघुराइ हो.. 

नगरी हो अयोध्या सी, रघुकुल सा घराना हो, 

चरण हो राघव के, जहाँ मेरा ठिकाना हो..

हो त्याग भरत जैसा, सीता सी नारी हो, 

लव कुश के जैसी, संतान हमारी हो.. 

श्रद्धा हो श्रवण जैसी, सबरी सी भक्ति हो, 



हनुमत के जैसी निष्ठा और शक्ति हो... "

ये रामायण है, पुण्य कथा श्री राम की।

 

“रामायण” क्या है

हम कथा सुनाते, रामसकल गुण धाम की,

हम कथा सुनाते, रामसकल गुण धाम की,

ये रामायण है,पुण्य कथा श्री राम की 


रामायण का एक छोटा सा वृतांत है, उसी से शायद कुछ समझा जा सकता है।


एक रात की बात हैं, माता कौशल्या जी को सोते में अपने महल की छत पर किसी के चलने की आहट सुनाई दी। 

नींद खुल गई, पूछा कौन हैं ?


मालूम पड़ा श्रुतकीर्ति जी (सबसे छोटी बहु, शत्रुघ्न जी की पत्नी)हैं ।

माता कौशल्या जी ने उन्हें नीचे बुलाया |


श्रुतकीर्ति जी आईं, चरणों में प्रणाम कर खड़ी रह गईं


माता कौशिल्या जी ने पूछा, श्रुति ! इतनी रात को अकेली छत पर क्या कर रही हो बेटी ? 

क्या नींद नहीं आ रही ?


शत्रुघ्न कहाँ है ?


श्रुतिकीर्ति की आँखें भर आईं, माँ की छाती से चिपटी, 

गोद में सिमट गईं, बोलीं, माँ उन्हें तो देखे हुए तेरह वर्ष हो गए ।


उफ ! 

कौशल्या जी का ह्रदय काँप कर झटपटा गया ।


तुरंत आवाज लगाई, सेवक दौड़े आए । 

आधी रात ही पालकी तैयार हुई, आज शत्रुघ्न जी की खोज होगी, 

माँ चली ।


आपको मालूम है शत्रुघ्न जी कहाँ मिले ?


अयोध्या जी के जिस दरवाजे के बाहर भरत जी नंदिग्राम में तपस्वी होकर रहते हैं, उसी दरवाजे के भीतर एक पत्थर की शिला हैं, उसी शिला पर, अपनी बाँह का तकिया बनाकर लेटे मिले !! 


माँ सिराहने बैठ गईं, 

बालों में हाथ फिराया तो शत्रुघ्न जी नेआँखें खोलीं, 


माँ !


उठे, चरणों में गिरे, माँ ! आपने क्यों कष्ट किया ? 

मुझे बुलवा लिया होता ।


माँ ने कहा, 

शत्रुघ्न ! यहाँ क्यों ?"


शत्रुघ्न जी की रुलाई फूट पड़ी, बोले- माँ ! भैया राम जी पिताजी की आज्ञा से वन चले गए, 

भैया लक्ष्मण जी उनके पीछे चले गए, भैया भरत जी भी नंदिग्राम में हैं, क्या ये महल, ये रथ, ये राजसी वस्त्र, विधाता ने मेरे ही लिए बनाए हैं ?


माता कौशल्या जी निरुत्तर रह गईं ।


देखो क्या है ये रामकथा...


यह भोग की नहीं....त्याग की कथा हैं..!!


यहाँ त्याग की ही प्रतियोगिता चल रही हैं और सभी प्रथम हैं, कोई पीछे नहीं रहा...  चारो भाइयों का प्रेम और त्याग एक दूसरे के प्रति अद्भुत-अभिनव और अलौकिक हैं ।


"रामायण" जीवन जीने की सबसे उत्तम शिक्षा देती हैं ।


भगवान राम को 14 वर्ष का वनवास हुआ तो उनकी पत्नी सीता माईया ने भी सहर्ष वनवास स्वीकार कर लिया..!!


परन्तु बचपन से ही बड़े भाई की सेवा मे रहने वाले लक्ष्मण जी कैसे राम जी से दूर हो जाते! 

माता सुमित्रा से तो उन्होंने आज्ञा ले ली थी, वन जाने की.. 


परन्तु जब पत्नी “उर्मिला” के कक्ष की ओर बढ़ रहे थे तो सोच रहे थे कि माँ ने तो आज्ञा दे दी, 

परन्तु उर्मिला को कैसे समझाऊंगा.??


क्या बोलूँगा उनसे.?


यहीं सोच विचार करके लक्ष्मण जी जैसे ही अपने कक्ष में पहुंचे तो देखा कि उर्मिला जी आरती का थाल लेके खड़ी थीं और बोलीं- 


"आप मेरी चिंता छोड़ प्रभु श्रीराम की सेवा में वन को जाओ...मैं आपको नहीं रोकूँगीं। मेरे कारण आपकी सेवा में कोई बाधा न आये, इसलिये साथ जाने की जिद्द भी नहीं करूंगी।"


लक्ष्मण जी को कहने में संकोच हो रहा था.!!


परन्तु उनके कुछ कहने से पहले ही उर्मिला जी ने उन्हें संकोच से बाहर निकाल दिया..!!


वास्तव में यहीं पत्नी का धर्म है..पति संकोच में पड़े, उससे पहले ही पत्नी उसके मन की बात जानकर उसे संकोच से बाहर कर दे.!!


लक्ष्मण जी चले गये परन्तु 14 वर्ष तक उर्मिला ने एक तपस्विनी की भांति कठोर तप किया.!!


वन में “प्रभु श्री राम माता सीता” की सेवा में लक्ष्मण जी कभी सोये नहीं , परन्तु उर्मिला ने भी अपने महलों के द्वार कभी बंद नहीं किये और सारी रात जाग जागकर उस दीपक की लौ को बुझने नहीं दिया.!!


मेघनाथ से युद्ध करते हुए जब लक्ष्मण जी को “शक्ति” लग जाती है और हनुमान जी उनके लिये संजीवनी का पर्वत लेके लौट रहे होते हैं, तो बीच में जब हनुमान जी अयोध्या के ऊपर से गुजर रहे थे तो भरत जी उन्हें राक्षस समझकर बाण मारते हैं और हनुमान जी गिर जाते हैं.!!


तब हनुमान जी सारा वृत्तांत सुनाते हैं कि, सीता जी को रावण हर ले गया, लक्ष्मण जी युद्ध में मूर्छित हो गए हैं।


यह सुनते ही कौशल्या जी कहती हैं कि राम को कहना कि “लक्ष्मण” के बिना अयोध्या में पैर भी मत रखना। राम वन में ही रहे.!!


माता “सुमित्रा” कहती हैं कि राम से कहना कि कोई बात नहीं..अभी शत्रुघ्न है.!!


मैं उसे भेज दूंगी..मेरे दोनों पुत्र “राम सेवा” के लिये ही तो जन्मे हैं.!!


माताओं का प्रेम देखकर हनुमान जी की आँखों से अश्रुधारा बह रही थी। परन्तु जब उन्होंने उर्मिला जी को देखा तो सोचने लगे कि, यह क्यों एकदम शांत और प्रसन्न खड़ी हैं?


क्या इन्हें अपनी पति के प्राणों की कोई चिंता नहीं?


हनुमान जी पूछते हैं- देवी! 


आपकी प्रसन्नता का कारण क्या है? आपके पति के प्राण संकट में हैं...सूर्य उदित होते ही सूर्य कुल का दीपक बुझ जायेगा। 


उर्मिला जी का उत्तर सुनकर तीनों लोकों का कोई भी प्राणी उनकी वंदना किये बिना नहीं रह पाएगा.!!


उर्मिला बोलीं- "

मेरा दीपक संकट में नहीं है, वो बुझ ही नहीं सकता.!!


रही सूर्योदय की बात तो आप चाहें तो कुछ दिन अयोध्या में विश्राम कर लीजिये, क्योंकि आपके वहां पहुंचे बिना सूर्य उदित हो ही नहीं सकता.!!


आपने कहा कि, प्रभु श्रीराम मेरे पति को अपनी गोद में लेकर बैठे हैं..!


जो “योगेश्वर प्रभु श्री राम” की गोदी में लेटा हो, काल उसे छू भी नहीं सकता..!!


यह तो वो दोनों लीला कर रहे हैं..


मेरे पति जब से वन गये हैं, तबसे सोये नहीं हैं..


उन्होंने न सोने का प्रण लिया था..इसलिए वे थोड़ी देर विश्राम कर रहे हैं..और जब भगवान् की गोद मिल गयी तो थोड़ा विश्राम ज्यादा हो गया...वे उठ जायेंगे..!!


और “शक्ति” मेरे पति को लगी ही नहीं, शक्ति तो प्रभु श्री राम जी को लगी है.!!


मेरे पति की हर श्वास में राम हैं, हर धड़कन में राम, उनके रोम रोम में राम हैं, उनके खून की बूंद बूंद में राम हैं, और जब उनके शरीर और आत्मा में ही सिर्फ राम हैं, तो शक्ति राम जी को ही लगी, दर्द राम जी को ही हो रहा.!!


इसलिये हनुमान जी आप निश्चिन्त होके जाएँ..सूर्य उदित नहीं होगा।"


राम राज्य की नींव जनक जी की बेटियां ही थीं... 


कभी “सीता” तो कभी “उर्मिला”..!!


 भगवान् राम ने तो केवल राम राज्य का कलश स्थापित किया ..परन्तु वास्तव में राम राज्य इन सबके प्रेम, त्याग, समर्पण और बलिदान से ही आया .!!


जिस मनुष्य में प्रेम, त्याग, समर्पण की भावना हो उस मनुष्य में राम हि बसता है... 

कभी समय मिले तो अपने वेद, पुराण, गीता, रामायण को पढ़ने और समझने का प्रयास कीजिएगा .,जीवन को एक अलग नज़रिए से देखने और जीने का सबक मिलेगा .!!


"लक्ष्मण सा भाई हो, कौशल्या माई हो,

स्वामी तुम जैसा, मेरा रघुराइ हो.. 

नगरी हो अयोध्या सी, रघुकुल सा घराना हो, 

चरण हो राघव के, जहाँ मेरा ठिकाना हो..

हो त्याग भरत जैसा, सीता सी नारी हो, 

लव कुश के जैसी, संतान हमारी हो.. 

श्रद्धा हो श्रवण जैसी, सबरी सी भक्ति हो, 

हनुमत के जैसी निष्ठा और शक्ति हो... "

ये रामायण है, पुण्य कथा श्री राम की।


*🙏🍁जय जय श्री सियाराम🍁🙏*

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सम्पूर्ण रामायण की कहानी

मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जीवन पर आधारित ‘रामायण’ हिन्दुओं का परम पूजनीय धार्मिक ग्रन्थ है. वाल्मीकि कृत रामायण में २४००० छंद है. जब रामानंद सागर ने वाल्मीकि रामायण को टीवी पर पेश किया, तो उन्हें  रामायण की सम्पूर्ण कहानी दिखाने में डेढ़ वर्ष लग गया.


ऋषि वाल्मीकि द्वारा लिखी गई ‘रामायण’ एवं तुलसीदास रचित ‘रामचरितमानस’ अयोध्या पति दशरथ नंदन श्री राम की जीवन कथा है. राम जो कि भगवान विष्णु का ही एक रूप हैं, अत्यधिक गुणवान एवं प्रतिभाशाली थे. राजा दशरथ की तीन रानियाँ थी जिनका नाम कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी था. राजा दशरथ के तीनों रानियों से चार अत्यधिक रूपवान एवं गुणवान पुत्रों का जन्म हुआ जिन्हें राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न नामों से जाना गया. राम, माता कौशल्या के पुत्र थे, भरत, माता कैकेयी के एवं लक्ष्मण व शत्रुघ्न, माता सुमित्रा के पुत्र थे. राम का विवाह स्वयंवर में सीता के साथ सुनिश्चित हुआ. राम भगवान ने समस्त वीर योद्धाओं एवं राजाओं के सामने शिव धनुष को तोड़कर माता सीता से विवाह किया.

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परिवार व्यवस्था के बिखराव को, संस्कार केन्द्र स्थापित कर रोकें - अरविन्द सिसौदिया

 https://arvindsisodiakota.blogspot.com/2023/04/parivar-vyvastha.html

परिवार व्यवस्था के बिखराव को, संस्कार केन्द्र स्थापित कर रोकें - अरविन्द सिसौदिया

विदेशी षडयंत्रों से अपसंस्कृति पोषित अभियान को रोकने में लगातार केंद्र और राज्यों की सरकारें विफल रही । समाज की सामजिक व्यवस्थाओं का संरक्षण करना भी राजधर्म है, किन्तु यह राजधर्म कभी निभाया ही नहीं गया। इससे समाज में अव्यवस्था का बोलबाला हो गया। इस बिगड़ी स्थिती को ही हम नव युग के नाम से जान सकते हैं।

सवाल यही खड़ा हुआ है कि समाज व्यवस्था को कैसे संभाला जाए, परिवार व्यवस्था को कैसे संभाला जाए,इसकी पवित्रता कैसे बचाई जाये । समाज के समन्वयकारी व सदभावी विवेक को किस तरह से विखंडित होने से रोका जाए ।  इसका उत्तर भी यही है कि समाज की व्यवस्थाओं को लेकर अनेक प्रकार के प्रयास सरकारों को , समाज स्तर पर और धर्म के स्तर पर आहूत कर इस क्षरण को रोकना चाहिये।

धर्म क्षेत्र की आय बहुत है किन्तु उसका संस्कार देनें पर खर्च कम है। इसलिये सरकार जो मंदिरों मठों और धार्मिक क्षेत्र से आय प्राप्त करती है वह पूरी की पूरी संस्कार केन्द्रो पर खर्च करे।

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सम्पूर्ण रामायण

समस्त रामायण को 7 कांडो में विभक्त किया गया है. इन 7 कांडो में भगवान राम के जीवन की सम्पूर्ण शौर्य गाथाओं का वर्णन किया गया है.

रामायण के 7 कांड -

1. बाल कांड -

राम भगवान का जन्म चैत्र मास की नवमी के दिन अयोध्या में राजा दशरथ और माता कौशल्या के यहाँ हुआ था. साथ ही में माता कैकेयी ने भरत और माता सुमित्रा ने लक्ष्मण और शत्रुघ्न को जन्म दिया. कुछ वर्ष पश्चात गुरु वशिष्ठ के आश्रम में उन्होंने शिक्षा दीक्षा प्राप्त की. बाद में गुरु विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा के लिए श्रीराम ने ताड़का, सुबाहु आदि राक्षसों का वध किया और देवी अहिल्या को शाप मुक्त किया. जनकपुर में श्रीराम ने माता सीता के स्वयंवर में भाग लिया और शिव धनुष को तोड़कर सीता माता से विवाह किया.


2. अयोध्या कांड -

राम-सीता विवाह के उपरांत राजा दशरथ ने राम के राज्याभिषेक की घोषणा की. परन्तु तभी मंथरा द्वारा भड़का दिए जाने के कारण रानी कैकेयी ने राजा दशरथ से उनके द्वारा दिए गए उन दो वचनों को पूरा करने को कहा जिन्हें एक बार रानी कैकेयी द्वारा राजा दशरथ के जीवन की रक्षा करने के प्रतिफल के रूप में राजा दशरथ ने कैकेयी को दिया था. मंथरा के कहे अनुसार कैकई ने दो वचन मांगे, एक राम को 14 वर्ष का वनवास और दूसरा भरत का राज्याभिषेक.


राजा दशरथ द्वारा दिए गए वचन की पालना करते हुए श्रीराम, माता सीता व लक्ष्मण सहित वनवास के लिए निकल पड़े.


वहीं दूसरी ओर राजा जनक की राम के वियोग में और श्रवण के माता पिता द्वारा दिए गए शाप के प्रभाव से मृत्यु हो गई. भरत राम को मनाने वन की ओर चले एवं राम भरत मिलाप हुआ. भरत ने राम से अयोध्या लौट चलने को कहा परन्तु राम ने मना कर दिया एवं भरत को अपनी चरण पादुकाएँ समर्पित की. भरत पादुकाएँ लेकर अयोध्या लौट आए व तपस्वी के भेष में अयोध्या से बाहर कुटी बनाकर रहने लगे.


भारत राम की पादुका ले आये और राज सिंघासन पर विराजमान कर दी.


3. अरण्य कांड -

वन में भगवान राम, लक्ष्मण एवं सीता ऋषि अत्रि व उनकी पत्नी अनुसुइया से मिले. इसके पश्चात रावण द्वारा सीता माता का हरण कर लिया गया. श्रीराम ने मुनि अगस्त्य, मुनि सुतिष्ण पर कृपा की एवं जटायु का उद्धार किया. सीता के वियोग में राम वन-वन भटकने लगे इसी बीच राम ने माता शबरी के झूठे बेर खाये और उनका उद्धार किया.


4. किष्किन्धा कांड -

सीता को खोजते समय श्रीराम की मुलाकात सुग्रीव, हनुमान एवं समस्त वानर सेना से हुई. भगवन ने सुग्रीव की सहायता के लिए बालि का उद्धार किया और तब सुग्रीव और उनकी सेना की मदद से सीता माता की खोज में निकल पड़े.


5. सुन्दर कांड -


सीता माता की खोज में हनुमान लंका गए. वहाँ सीता माता से मिले. इसके पश्चात् हनुमान ने अपनी पूंछ से लंका में आग लगा दी.


रावण के भ्राता विभीषण राम की शरण में आ गए. राम ने समुद्र का घमंड शांत किया और तब हनुमान व अन्य वानरों ने समुद्र में राम नाम के पत्थर तैराकर समुद्र पर सेतु का निर्माण किया.


6. लंका कांड -


श्रीराम व उनकी सेना सेतुमार्ग से लंका पहुंचे और राम ने अंगद को दूत बनाकर रावण के समक्ष संधि के लिए भेजा. परन्तु रावण ने अपने घमंड के आगे राम की आज्ञा नहीं मानी. तब युद्ध की घोषणा की गई. भयावह युद्ध प्रारम्भ हो गया. रावण द्वारा अपने समस्त वीर एवं बलशाली योद्धाओं को रणभूमि में भेजा गया. परन्तु सभी राक्षसों को राम व उनकी सेना ने परास्त कर दिया. लक्ष्मण व मेघनाथ के युद्ध में लक्ष्मण को बाण लगा. उनके उपचार के लिए हनुमान संजीवनी बूटी ले आए. तब लक्ष्मण ने मेघनाथ का एवं राम ने कुम्भकरण जैसे राक्षसों का वध किया.


तत्पश्चात श्रीराम एवं रावण के मध्य भीषण युद्ध हुआ. युद्ध में राम भगवान ने रावण को परास्त कर विजय प्राप्त की. तब विभीषण का राज्याभिषेक हुआ. सीता माता को लंका से लाया गया एवं अपनी पवित्रता साबित करने के लिए उन्हें अग्नि परीक्षा देनी पड़ी. अंत में पुष्पक विमान द्वारा श्रीराम, माँ सीता व लक्ष्मण, वानरों सहित अयोध्या पहुंच गए.


रामानंद सागर का मुख्या टीवी प्रोग्राम इसी काण्ड के साथ समाप्त हो गया था. लेकिन रामायण में एक काण्ड और भी है, उत्तर काण्ड, जिसे तत्पश्चात एक और टीवी प्रोग्राम ‘उत्तर रामायण’ के नाम से दर्शाया गया था.


7. उत्तर कांड -


भगवान् राम के अयोध्या पहुंचने की ख़ुशी में अयोध्यावासियों द्वारा दीपोत्सव का आयोजन किया गया. इसके पश्चात् बड़े हर्ष के साथ सभी ने श्रीराम का राज्याभिषेक किया.


इन 7 कांडो में राम के जीवन का सम्पूर्ण चरित्र चित्रण किया गया है. इसके बाद सीता माता को लंकापति रावण द्वारा हर लिए जाने के कारण उनपर समस्त अयोध्यावासियों द्वारा लांछन लगाए गए. तब श्रीराम ने उन्हें वन में भेज दिया. सीता माता ऋषि वाल्मीकि के आश्रम में रहने लगी. वहाँ उनके दो चन्द्रमुख वाले शिशुओं का जन्म हुआ. उनका नाम लव एवं कुश रखा गया. वे अपने पिता राम के समान अत्यधिक पराक्रमी व शौर्यवान थे. उन्होंने अश्वमेघ यज्ञ जीता. राम के दरबार में उपस्थित हुए व अपने मधुर शब्दों में राम-सीता की जीवन गाथा सुनाई. तब ऋषि वाल्मीकि ने राम को बताया कि वे दोनों उन्हीं के पुत्र हैं. तब भगवान राम को अपनी गलती पर पछतावा हुआ. अंत में सीता ने धरती माँ से अनुरोध किया कि वे उन्हें अपनी शरण में ले लें. तब धरती फटी एवं माता सीता उसमें समा गयीं.


इस तरह से वाल्मीकि कृत रामायण 7 कांडो में पूर्ण हुई. रामायण हिन्दू धर्म का सबसे पवित्र ग्रंथ माना गया है जो हिन्दुओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत है. हिन्दू धर्म में रामायण को मर्यादापुरुषोत्तम राम का स्वरुप माना गया है.

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Hum Katha Sunate

Ram Sakal Gun Dham Ki

Ye Ramayan Hai

Punya Katha Shree Ram Ki


हम कथा सुनाते रामसकल गुण धाम की ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की

||दोहा||

| | वाल्मीकि गुरु देव के, कर पंकज सिर नाय,

सुमिरे मात सरस्वती , हम पर हो सहाय,

मात पिता की वन्दना, करते बारम बार,

गुरु-जन राजा प्रजा जन, नमन करो स्वीकार | |

 

हम कथा सुनाते,

रामसकल गुण धाम की,

हम कथा सुनाते,

रामसकल गुण धाम की,

ये रामायण है,

पुण्य कथा श्री राम की ||

जम्बू द्वीपे भारत खण्डे,

आर्यावर्ते भारत वर्षे,

एक नगरी है विख्यात, अयोध्या नाम की,

यही जनम भूमि है,

परम पूज्य श्री राम की,

हम कथा सुनाते,रामसकल गुण धाम की,

ये रामायण है,

पुण्य कथा श्री राम की,

ये रामायण है,

पुण्य कथा श्री राम की ||


रघुकुल के राजा धर्मात्मा,

चक्रवर्ती दशरथ पुण्यात्मा,

संतति हेतु यज्ञ करवाया,

धरम यज्ञ का शुभ फल पाया,

नृप घर जन्मे चार कुमारा,

रघुकुल दीप जगत आधारा,

चारों भ्रातों के शुभ नाम,

भरत शत्रुघ्न लक्षमण राम,

गुरु वशिष्ठ के गुरुकुल जाके,

अल्प काल विद्या सब पाके,

पूरण हुई शिक्षा,

रघुवर पुराण काम की,

हम कथा सुनाते,

राम सकल गुण धाम की,

यह रामायण है,

पुण्य कथा श्री राम की,

यह रामायण है,

पुण्य कथा श्री राम की


मृदु स्वर कोमल भावना,

रोचक प्रस्तुति ढंग,

एक एक कर वर्णन करे,

लव कुश राम प्रसंग,

विश्वामित्र महामुनि राई,

इनके संग चले दोउ भाई,

कैसे राम तड़का,

कैसे नाथ अहिल्या तारी,

मुनिवर विश्वामित्र तब,

संग ले लक्ष्मण राम,

सिया स्वंवर देखने,

पहुंचे मिथिला धाम,


जनकपुर उत्सव है भारी,

जनकपुर उत्सव है भारी,

अपने वर का चयन करेगी,

सीता सुकुमारी,

जनकपुर उत्सव है भारी,

जनक राज का कठिन प्रण,

सुनो सुनो सब कोई,

जो तोड़े शिव धनुष को,

सो सीतापति होये,

जो तोड़े शिव धनुष कठोर,

सब की दृष्टी राम की ओर,

राम विनयगुण के अवतार,

गुरुवर की आज्ञा शिरोधार्य,

सहज भाव से शिव धनु तोड़ा,

जनक सुता संग नाता जोड़ा,

रघुवर जैसा और न कोई,

सीता की समता नहीं होई,

दोउ करे पराजित कांति कोटि रति काम की,

हम कथा सुनाते,

राम सकल गुण धाम की,

यह रामायण है,

पुण्य कथा सिया राम की


सब पर शब्द मोहिनी डाली,

मंत्र मुघ्द भये सब नर नारी,

यूँ दिन रेन जात हैं बीते,

लव कुश ने सबके मन जीते,

वन गमन सीता हरण हनुमत मिलन,

लंका दहन रावण मरण,

अयोध्या पुनरागमन,

सब विस्तार कथा सुनाई,

राजा राम भये रघुराई,

राम राज आयो सुख दायी,

सुख सृमद्धि श्री घर घर आयी,

काल चक्र ने घटना क्रम में,

ऐसा चक्र चलाया,

राम सिया के जीवन में,

फिर घोर अँधेरा छाया,

अवध में ऐसा,

ऐसा एक दिन आया,

निष्कलंक सीता पे प्रजा ने,

मिथ्या दोष लगाया,

अवध में ऐसा,

ऐसा एक दिन आया,


चल दी सिया जब तोड़कर,

सब स्नेह नाते मोह के,

पाषाण हृदयो में न,

अंगारे जगे विद्रोह के,

ममतामयी माओं के,

आँचल भी सिमट कर रह गए,

गुरुदेव ज्ञान और नीति के,

सागर भी घट कर रह गए,

न रघुकुल न रघुकुल नायक,

कोई न हुआ सिया सहायक,

मानवता को खो बैठे जब,

सभ्य नगर के वासी,

तब सीता को हुआ सहायक,

वन का एक सन्यासी,

उन ऋषि परम उदार का,

वाल्मीकि शुभ नाम,

सीता को आश्रय दिया,

ले आये निज धाम,

रघुकुल में कुलदीप जलाये,

राम के दो सुत सिया ने जाएँ,

श्रोतागण, जो एक राजा की पुत्री है,

एक राजा की पुत्रवधु है,

और एक चक्रवर्ती सम्राट की पत्नी है,

वोही महारानी सीता,

वनवास के दुखो में,

अपने दिनों कैसे काटती है,

अपने कुल के गौरव और,

स्वाभिमान की रक्षा करते हुए,

किसी से सहायता मांगे बिना,

कैसे अपना काम वोह स्वयं करती है,

स्वयं वन से लकड़ी काटती है,

सवयं अपना धान काटती है,

स्वयं अपनी चक्की पीसती है,

और अपनी सन्तानो को,

स्वाभलम्बी बनने की,

शिक्षा कैसे देती है,

अब उनकी करुण झानी देखिये,


जनक दुलारी कुलवधू दशरथ जी,

की राज रानी हो के,

दिन वन में बिताती है,

रहती थी घेरि जिसे,

दास दासिया आठोयाम,

दासी बनी अपनी,

उदासी को छुपाती है,

धरम प्रवीण सती,

परम कुलीना सब,

विधि दोष हिना,

जीना दुःख में सिखाती है,

जगमाता हरी प्रिया लक्ष्मी स्वरूप सिया,

कूटती है धान भोज स्वयं बनाती है,

कठिन कुल्हाड़ी लेके लकडिया काटती है,

करम लिखे को पर काट नहीं पाती है,

फूल भी उठाना भारी जिस सुकुमारी को था,

दुःख भरी जीवन का बोझ वो उठाती है,

अर्धागिनी रघुवीर की वोह धरे धीर,

भरती है नीर नीर जल में नहलाती है,

जिसके प्रजा के अपवादों,

के कुचक्रो में,

पीसती है चक्की,

स्वाभिमान बचाती है,

पालती है बच्चौं को,

वो कर्मयोगी की भाति,

स्वालम्बी सफल बनाती है,

ऐसी सीता माता की परीक्षा लेती,

निठुर नियति को दया भी नहीं आती है,

ओ ओ उस दुखिया के राज दुलारे,

हम ही सुत श्री राम तिहारे,

ओ सीता मा की आँख के तारे,

लव कुश है पितु नाम हमारे,

हे पितु भाग्य हमारे जागे,

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