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हमारी बौद्धिक क्षमता our intellectual abilities

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  बौद्धिक संपदा की जननी भारत ही है - अरविन्द सिसोदिया  आज विश्व बौद्धिक संपदा दिवस मना रहा है, यह 26 अप्रैल को पूरे विश्व में मनाया जाता है। इस दिवस को मूल रूप से पेटेंट संबंधी नियम कानूनों के प्रचार प्रसार की दृष्टि से अधिक महत्व दिया गया है। अपनी बुद्धि के सृजित या अनुसंधानकृत या परिश्रम से जो बौद्धिक स्तर का ज्ञान अथवा तकनीक या कुछ बिलकुल नया अर्जित किया करते है, उस पर अपने एकाधिकार को, स्वामित्व को बनाये रखना और फिर उससे आय प्राप्त करते रहने की व्यवस्था संबंधी एक नियमावली को पेटेंट कानून के रुप में जाना जाता है और इसी का जनजागरण इस दिवस के माध्यम से किया जाता है। ---------------------- India is the mother of intellectual property - Arvind Sisodia India is the mother of intellectual property - Arvind Sisodia https://arvindsisodiakota.blogspot.com/2023/04/india-is-mother-of-intellectual-property.html The great research handed over by the old generations of India, the Archayas, Dharmacharyas, Rishis, Munis, Sages and Saints, should be taken forward by the new generation of I...

अद्वैत वेदान्त के प्रवर्तक जगद्गुरु आदि शंकराचार्य

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    सर्वदा प्रासंगिक हैं जगद्गुरु शंकराचार्य  -    डॉ. गीताराम शर्मा आज अद्वैत वेदान्त के प्रवर्तक,अप्रतिम संन्यासी सनातन धर्म के पुनरुद्धारक महान समाज शास्ता, अध्यात्म द्वारा भारत की अस्मिता के संस्थापक महान आचार्य आदि शंकराचार्य का जन्मदिन है | जगद्गुरु शंकराचार्य का अवदान बहु आयामी है| यथा उन्होंने वैदिक वाड़मय के नवनीत उपनिषदों, श्रीमद्भगवद्गीता, ब्रह्म सूत्र आदि के भाष्यकार के रुप में अद्वैत वेदान्त का प्रवर्तन किया  | बहुत ललित ,मधुर भक्तिरसभावित  स्तोत्रों की रचना द्वारा मानव मात्र के मन में प्रेम, दया, करुणा, माधुर्य जैसे उदात्त भावों को जाग्रत किया |राष्ट्र की एकता अखण्डता, और समरसता के लिए न  केवल अद्भुत दर्शन दिया अपितु देश की चारों दिशाओं में चार पीठों की स्थापना के द्वारा भौगोलिक एकता को स्थायित्व दिया | ईसा से लगभग ११०० वर्ष पूर्व अवतरित आदि शंकराचार्य ने अपने समय के विविध आचार्यों से सघन शास्त्रार्थ द्वारा न केवल खण्डित होती जा रही अध्यात्म परम्परा को सुदृढ़ किया अपितु खण्ड खण्ड बिखरती आध्यात्मिक चेतना को  अद्वैत वेदान्त का पथि...

Ramayana - the culmination of sacrifice and dedication

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  रामायण - त्याग और समर्पण क़ी पराकाष्ठा Ramayana - the culmination of sacrifice and dedication रामायण - समर्पण क़ी पराकाष्ठा अरविन्द सिसौदिया 9414180151 "लक्ष्मण सा भाई हो, कौशल्या माई हो, स्वामी तुम जैसा, मेरा रघुराइ हो..  नगरी हो अयोध्या सी, रघुकुल सा घराना हो,  चरण हो राघव के, जहाँ मेरा ठिकाना हो.. हो त्याग भरत जैसा, सीता सी नारी हो,  लव कुश के जैसी, संतान हमारी हो..  श्रद्धा हो श्रवण जैसी, सबरी सी भक्ति हो,  हनुमत के जैसी निष्ठा और शक्ति हो... " ये रामायण है, पुण्य कथा श्री राम की।   “रामायण” क्या है हम कथा सुनाते, रामसकल गुण धाम की, हम कथा सुनाते, रामसकल गुण धाम की, ये रामायण है,पुण्य कथा श्री राम की  रामायण का एक छोटा सा वृतांत है, उसी से शायद कुछ समझा जा सकता है। एक रात की बात हैं, माता कौशल्या जी को सोते में अपने महल की छत पर किसी के चलने की आहट सुनाई दी।  नींद खुल गई, पूछा कौन हैं ? मालूम पड़ा श्रुतकीर्ति जी (सबसे छोटी बहु, शत्रुघ्न जी की पत्नी)हैं । माता कौशल्या जी ने उन्हें नीचे बुलाया | श्रुतकीर्ति जी आईं, चरणों में प्रणाम कर खड़ी ...

ईश्वर के दंड अधिकारी शनि देव के कुछ सुप्रसिद्ध दंड shani maharaj

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 ईश्वर के दंड अधिकारी शनि देव के कुछ सुप्रसिद्ध दंड शनि देव के विषय में यह कहा जाता है कि :- शनिदेव के कारण गणेश जी का सिर छेदन हुआ। शनिदेव के कारण राम जी को वनवास हुआ था। रावण का संहार शनिदेव के कारण हुआ था। शनिदेव के कारण पांडवों को राज्य से भटकना पड़ा। शनि के क्रोध के कारण विक्रमादित्य जैसे राजा को कष्ट झेलना पड़ा। शनिदेव के कारण राजा हरिशचंद्र को दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी। राजा नल और उनकी रानी दमयंती को जीवन में कई कष्टों का सामना करना पड़ा था। ------------------------ परिवार व्यवस्था के बिखराव को, संस्कार केन्द्र स्थापित कर रोकें - अरविन्द सिसौदिया  https://arvindsisodiakota.blogspot.com/2023/04/parivar-vyvastha.html परिवार व्यवस्था के बिखराव को, संस्कार केन्द्र स्थापित कर रोकें - अरविन्द सिसौदिया विदेशी षडयंत्रों से अपसंस्कृति पोषित अभियान को रोकने में लगातार केंद्र और राज्यों की सरकारें विफल रही । समाज की सामजिक व्यवस्थाओं का संरक्षण करना भी राजधर्म है, किन्तु यह राजधर्म कभी निभाया ही नहीं गया। इससे समाज में अव्यवस्था का बोलबाला हो गया। इस बिगड़ी स्थिती को ही हम नव युग क...

ईश्वर और धर्म का मर्म - अरविन्द सिसौदिया God and Dharm - Arvind Sisodia

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  ईश्वर और धर्म का मर्म - अरविन्द सिसौदिया  Meaning of God and Dharm & Religion - Arvind Sisodia ईश्वर और धर्म का मर्म - अरविन्द सिसौदिया ईश्वर और धर्म का मर्म - अरविन्द सिसौदिया Meaning of God and Dharm & Religion - Arvind Sisodia - 9414180151 मूलरूप से धर्म,पंथ,सम्प्रदाय,मान्यतायें,परम्परायें,वर्ण,जाती,गोत्र,रिश्ते-नाते,कुटुम्ब,परिवार और स्त्री-पुरूष,पशु-पक्षि, पेड-पौधे सहित चैतनायुक्त समाज व्यवस्था के महत्वपूर्ण अंग हैं। जिनको मानव ने अपने विकास के साथ प्रगाढ़ किया, व्यवस्थित किया, अनुसंधान और शोध किया है। इनकी अपनी अपनी परिभाषायें है, सीमायें हैं दायरे हैं। यह स्वयं से प्रारम्भ होकर ईश्वर तक पहुंचनें का मार्ग है। ईश्वर और उसकी व्यवस्था तथा ईष्वरीय प्रशासान के कर्ताधर्ता देवादि देवों देवियों तक पहुंचना भलेही दुर्लभ हो, किन्तु उनको जानने समझनें का महान परिश्रम पुरूषार्थ सबसे पहले भारत में ही हुआ और जिन्होनें इस कार्य में अपना जीवन समर्पित किया वे सनातन हिन्दू कहलाये। सनातन हिन्दू व्यवस्था पृथ्वी की प्रकृति में 84 लाख प्रकार के शरीर अर्थात योनियां मानती है। स्त्री पुर...

प्रथम पृष्ठ प्रथम पूज्य गणेश जी को समर्पित

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